वीर धीर शूर पराक्रम आंजनेय स्वामि की जै
सदा राम रामेति
रामामृतं ते
सदाराममानंदनिष्यंदकंदम् |
पिबंतं नमंतं
सुदंतं हसंतं
हनूमंतमंतर्भजे
तं नितांतम् ||
रागः : मधुवंती
तालः : आदि
वंदे संतं श्री हनुमंतम्
रामदासममलं बलवंतम् ||
प्रेमरुद्धगळं अश्रुवहंतम्
पुलकांकितवपुषा विलसंतम् ॥
राम-कथामृत-मधु निपिबंतम्
परमप्रेम भरेण नटंतम् ॥
कदाचिदानंदेन हसंतम्
क्वचित्कदाचिदपि प्ररुदंतम् ॥
सर्वं राममयं पश्यंतम्
राम राम इति सदा जपंतम् ॥
सद्भक्तिपथं समुपदिशंतम्
विठ्ठलपंथं प्रति सुखयंतम् ॥
आंजनेय हनुमंत
श्रीरामचंद्रन सद्भक्त
वीर धीर शूर पराक्रम आंजनेय स्वामि की जै