गुरुदेवता भजनमंजरी

निन्नंतॆ नानागलारॆ

घोषः

वीर धीर शूर पराक्रम आंजनेय स्वामि की जै

श्लोकः

आंजनेयमतिपाटलाननं
कांचनाद्रि कमनीयविग्रहम् |
पारिजाततरुमूलवासिनं
भावयामि पवमाननंदनम् ||

यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं
तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिम् |
बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं
मारुतिं नमत राक्षसांतकम् ||

कीर्तनम् — 2

रागः : सिंधुभैरवि

तालः : आदि

निन्नंतॆ नानागलारॆ
एनु माडलि हनुम |
निन्नंतागदॆ नन्नवनागनॆ
निन्न प्रभु श्रीराम |
निन्न प्रभु श्रीराम ||

ऎटुकद हण्णनॆ ना तरलारॆ
मेलक्कॆ ऎगरि हनुम |
सूर्यन हिडिव साहसक्किळिदरॆ
आक्षण ना निर्नाम ||

हादिय हळ्ळवॆ दाटलसाध्य
हीगिरुवाग हनुम |
सागर दाटुव हंबल साध्यवॆ
अय्यो राम राम ||

जगळव कंडरॆ ओडुवॆ दूर
ऎदॆयलि डव डव हनुम |
रक्कसर ना कनसलिकंडरू
बदुकिगॆ पूर्ण विराम ||

अट्टव हत्तलु शक्तियु इल्ल
इंथ देहवु हनुम |
बॆट्टवनॆत्तुवॆनॆंदरॆ ऎन्ननु
नंबुवने श्रीराम ||

कनसलु मनसलु निन्न उसिरलु
तुंबिदॆ रामन नाम |
चंचलवाद नन्नीमनदलि
निल्लुवरारो हनुम ||

भक्तियु इल्ल शक्तियु
इल्ल हुट्टिदॆ एतको काणॆ |
नी कृपॆमाडदॆ होदरॆ
हनुम निन्न रामन आणॆ ||

नामावलिः

वीर मारुति गंभीर मारुति
धीर मारुति अति धीर मारुति
गीत मारुति संगीत मारुति
दूत मारुति रामदूत मारुति
भक्त मारुति परमभक्त मारुति
दास मारुति राम दास मारुति

घोषः

वीर धीर शूर पराक्रम आंजनेय स्वामि की जै