गुरुदेवता भजनमंजरी

मेरे तो गिरिधर गोपाल

घोषः

गोपिका जीवन स्मरणं गोविंद गोविंद

श्लोकः

उत्फुल्लपद्मपत्राक्षं
नीलजीमूतसन्निभम् |
यादवानां शिरोरत्नं
कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ||

कीर्तनम् — 2

मेरे तो गिरिधर गोपाल
दूसरो न कोयी ||
जाके सिर मोर मुकुट
मेरो पति सोयी

असुवन जल सींच सींच
प्रेमबेल बोयी
अब तो बेल फैल गई
आनंद फल होयी ||

तात मात भ्रात बंधु
आपनो न कोयी
छाड गयी कुलकि कान
का करिये कोयी||

शंख चक्र गदा पद्म
कंठमाला होयी
दासी मीरा गिरिधर प्रभो
तारो अब मोयी ||

नामावलिः

गोविंद माधव
गोपाल केशव
जय नंद मुकुंद
नवनीतचोर
राधे गोविंद
गिरिधारि गिरिधारि जय
राधे गोविंद
घन श्याम श्याम श्याम
श्याम राधेगोविंदना

घोषः

गोपिका जीवन स्मरणं गोविंद गोविंद