जगद्गुरु शंकराचार्य गुरु महाराज की जै |
आनंदघनमद्वंद्वं
निर्विकारं निरंजनम् |
भजेहं भगवत्पादं
भजतामभयप्रदम् ||
रागः : बृंदावनि
तालः : आदि
वंदनं गुरु वीरनॆ
निमगॊंदनं सुख सारनॆ |
बंधमोक्षगळॆंब ऎरडर
संदु तोरिद धीरनॆ ||
तन्न निजवनु नोडनु
ई भिन्नवळियद मूढनु |
निन्न पादव कंड मनुजनु
जन्मवळिदारूढनु ||
हिंदॆ सुकृतव माडिदॆ
अदरिंद निन्नॊळु कूडिदॆ |
बंधविल्लद पूर्णसहजानंद
पदविय नीडिदॆ ||
तंदॆतायिगळादरो
बहुमंदि कळॆदे होदरु |
तंदॆ सद्गुरु शंकरार्यने
हिंदॆ निल्लुव देवरु ||
शंकरदेशिक लोकगुरो
निमगे शरणु जगद्गुरो
हिंदॆ सुकृतव माडिदॆ
अदरिंद निन्नॊळु कूडिदॆ |
शंकरदेशिक लोकगुरो
निमगे शरणु जगद्गुरो
निन्न पादव कंड मनुजनु
जन्मवळिदारूढनु |
जगद्गुरु शंकराचार्य गुरु महाराज की जै |