गुरुदेवता भजनमंजरी

वंदनं गुरु वीरनॆ

घोषः

जगद्गुरु शंकराचार्य गुरु महाराज की जै |

श्लोकः

आनंदघनमद्वंद्वं
निर्विकारं निरंजनम् |
भजेहं भगवत्पादं
भजतामभयप्रदम् ||

कीर्तनम् — 2

रागः : बृंदावनि

तालः : आदि

वंदनं गुरु वीरनॆ
निमगॊंदनं सुख सारनॆ |
बंधमोक्षगळॆंब ऎरडर
संदु तोरिद धीरनॆ ||

तन्न निजवनु नोडनु
ई भिन्नवळियद मूढनु |
निन्न पादव कंड मनुजनु
जन्मवळिदारूढनु ||

हिंदॆ सुकृतव माडिदॆ
अदरिंद निन्नॊळु कूडिदॆ |
बंधविल्लद पूर्णसहजानंद
पदविय नीडिदॆ ||

तंदॆतायिगळादरो
बहुमंदि कळॆदे होदरु |
तंदॆ सद्गुरु शंकरार्यने
हिंदॆ निल्लुव देवरु ||

नामावलिः

शंकरदेशिक लोकगुरो
निमगे शरणु जगद्गुरो
हिंदॆ सुकृतव माडिदॆ
अदरिंद निन्नॊळु कूडिदॆ |
शंकरदेशिक लोकगुरो
निमगे शरणु जगद्गुरो
निन्न पादव कंड मनुजनु
जन्मवळिदारूढनु |

घोषः

जगद्गुरु शंकराचार्य गुरु महाराज की जै |