जगद्गुरु शंकराचार्य गुरु महाराज की जै |
श्री शंकरेति सततं परिकीर्तयंति
पादांबुजं परगुरोर्हृदि चिंतयंति |
ये वै त एव सुखिनः पुरुषा हि लोके
श्री शंकरार्य मम देहि पदावलंबम् ||
रागः : आभेरी
तालः : आदि
भज रे लोकगुरुं मनुज
भज रे लोकगुरुम् ||
आर्यांबामुखपंकजभानुं
आर्याजानिपदांबुजभृंगम् ||
नित्यानित्यविवेचनचतुरं
सत्याद्वयचिच्चिंतननिरतम् ||
दंडकमंडलुमंडितपाणिं
पंडितपामरवंदितपादम् ||
शंकरमाश्रितजनमंदारं
किंकरभारतीतीर्थसुसेव्यम् ||
जगद्गुरो श्रीशंकर
मुक्तिप्रदायक शंकर
विरागि पूजित शंकर
विभूतिभूषित शंकर
भाष्यकार श्रीशंकर
भद्रप्रदायक शंकर
सद्गुरुमूर्ते शंकर
संकटवारक शंकर
शिवावतार शंकर
शिष्यहितंकर शंकर
जगद्गुरु शंकराचार्य गुरु महाराज की जै |